छत्तीसगढ़ में राम वन गमन पर्यटन परिपथ के अंतर्गत वनवास काल में प्रभु राम जिन स्थानों पर गए उन स्थानों को धार्मिक पर्यटन के रूप में विकसित क...
छत्तीसगढ़ में राम वन गमन पर्यटन परिपथ के अंतर्गत वनवास काल में प्रभु राम जिन स्थानों पर गए उन स्थानों को धार्मिक पर्यटन के रूप में विकसित करने की योजना बनाई गई है। इन स्थानों में सबसे पहले माता कौशल्या की जन्मभूमि चंदखुरी में स्थित कौशल्या माता के मंदिर का जीर्णाेद्धार सहित मंदिर परिसर के सौंदर्यीकरण कर इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया गया है। राज्य सरकार द्वारा माता शबरी की नगरी शिवरीनारायण को भी उसी तर्ज पर विकसित किया जा रहा है।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की पहल पर राम वन गमन पर्यटन परिपथ को विकसित करने की दिशा में तेजी से काम हो रहा है। परियोजना के अंतर्गत 75 स्थानों को चिन्हांकन किया गया है। प्रथम चरण में 9 स्थानों को विकसित करने का काम शुरू किया गया है। प्रदेश के पौराणिक और पुरातात्विक विरासतों को नई पहचान एवं उन्हें भव्य बनाने की दिशा में काम हो रहा है। छत्तीसगढ़ और यहां के लोगों के लिए गर्व की बात है कि भगवान राम ने अपने वनवास काल का लंबा समय छत्तीसगढ़ में गुजारा था।
राम वन गमन पर्यटन परिपथ योजना के तहत जिन स्थलों को पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने के लिए चयन किया है। इनमें रायपुर जिले का चंदखुरी जांजगीर चांपा जिले के शिवरीनारायण के साथ ही कोरिया जिले का सीतामढ़ी हर चौका, सरगुजा का सप्तऋषि आश्रम, बलौदाबाजार भाटापारा का तुरतुरिया, गरियाबंद जिले का राजिम, बस्तर का जगदलपुर, सुकमा का रामाराम और सहित अन्य स्थल शामिल हैं।
मान्यता के अनुसार 14 वर्ष के वनवास के दौरान प्रभु राम ने लगभग 10 वर्ष का समय छत्तीसगढ़ में गुजारा था। वनवास काल में उन्होंने छत्तीसगढ़ में प्रवेश कोरिया के सीतामढ़ी हरचौका से किया था। उत्तर से दक्षिण की ओर बढ़ते हुए वे छत्तीसगढ़ के अनेक स्थानों से वे गुजरे। सुकमा का रामाराम उनका अंतिम पड़ाव था। प्रभु राम वनवास काल के दौरान लगभग 2260 किलोमीटर की यात्रा की थी। जिस मार्ग को हरा-भरा बनाने का काम छत्तीसगढ़ सरकार के वन विभाग के द्वारा किया जा रहा है। इस मार्ग में हरे-भरे वृक्ष के साथ-साथ फलदार पौधों को रोपण किया जा रहा है।
हर युग में शिवरीनारायण नगर का अस्तित्व रहा है, यह नगर मातंग ऋषि का गुरूकुल आश्रम और माता शबरी की साधना स्थली भी रही है। यह महानदी, शिवनाथ और जोंक नदी के त्रिधारा संगम के तट पर स्थित प्राचीन नगर है। शिवरीनारायण प्राकृतिक छटा से परिपूर्ण नगर है, जो छत्तीसगढ़ के जगन्नाथपुरी धाम के नाम से विख्यात है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार प्रभु राम ने शबरी के जूठे बेर यहीं खाये थे और उन्हें मोक्ष प्रदान किया था। शबरी की स्मृति को चिरस्थायी बनाने के लिए शबरी-नारायण नगर बसा है। प्रचलित किंवदंती के अनुसार प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा को भगवान जगन्नाथ यहां विराजते हैं।
शिवरीनारायण में राम वन गमन पर्यटन परिपथ के अतर्गत पर्यटन सुविधाओं के विकास के लिए 39 करोड़ रूपए के कार्य होंगे। इसके तहत प्रथम चरण में 6 करोड़ के विकास कार्य पूर्ण कराए गए हैं। इनमें शिवरीनारायण के मंदिर परिसर का उन्नयन एवं सौदर्यीकरण, दीप स्तंभ, रामायण इंटरप्रिटेशन सेन्टर एवं पर्यटक सूचना केन्द्र, मंदिर मार्ग पर भव्य प्रवेश द्वार, नदी घाट का विकास एवं सौंदर्यीकरण, घाट में प्रभु राम-लक्ष्मण और शबरी माता की प्रतिमा का निर्माण किया गया है। इसी प्रकार घाट में व्यू पाइंट कियोस्क, लैण्ड स्केपिंग कार्य, बाउंड्रीवाल, मॉड्यूलर शॉप, विशाल पार्किंग एरिया और सार्वजनिक शौचालय का निर्माण शामिल है।
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