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पीएम बोले-कोर्ट के सामने चक्कर शब्द मेंडेटरी हो गया था, इसमें फंस गए तो कब निकलेंगे पता नहीं; दशकों बाद सरकार ने प्रभावी कदम उठाए

जोधपुर। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जोधपुर में कहा- दशकों से कोर्ट के सामने चक्कर शब्द मेंडेटरी (अनिवार्य) हो गया था। कोई बुरा मत मानना। को...

जोधपुर। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जोधपुर में कहा- दशकों से कोर्ट के सामने चक्कर शब्द मेंडेटरी (अनिवार्य) हो गया था। कोई बुरा मत मानना। कोर्ट का चक्कर, मुकदमे का चक्कर यानी एक ऐसा चक्कर हो गया था कि इसमें फंस गए तो कब निकलेंगे पता नहीं। मोदी ने रविवार को राजस्थान हाईकोर्ट की स्थापना के प्लेटिनम जुबली समापन समारोह में ये बात कही। मोदी ने हाईकोर्ट म्यूजियम का भी उद्घाटन किया।

मोदी ने कहा- आज दशकों बाद आम लोगों की पीड़ा और उस चक्कर को खत्म करने के लिए सरकार ने प्रभावी कदम उठाए हैं। मेरा मानना है कि न्याय हमेशा सरल और स्पष्ट होता है, लेकिन कई बार प्रक्रियाएं उसे मुश्किल बना देती है। हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है कि हम न्याय को सरल और स्पष्ट बनाएं।

पीएम ने कहा- राजस्थान हाईकोर्ट के अस्तित्व से हमारे राष्ट्र की एकता का इतिहास जुड़ा है। आप सब जानते हैं कि सरदार पटेल ने जब 500 से ज्यादा रियासतों को जोड़कर देश को एक सूत्र में पिरोया था, तो उसमें राजस्थान की भी कई रियासतें थीं। जयपुर, उदयपुर और कोटा जैसी कई रियासतों के अपने हाईकोर्ट भी थे। इनके इंटिग्रेशन (एकीकरण) से राजस्थान हाईकोर्ट अस्तित्व में आया यानी राष्ट्रीय एकता ये हमारे ज्यूडिशियल सिस्टम का भी फाउंडिंग स्टोन है। ये फाउंडिंग स्टोन जितना मजबूत होगा, हमारा देश और व्यवस्थाएं भी उतनी ही मजबूत होंगी।

मोदी ने कहा- मेरा मानना है कि न्याय हमेशा सरल और स्पष्ट होता है, लेकिन कई बार प्रक्रियाएं उसे मुश्किल बना देती हैं। ये हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है कि हम न्याय को ज्यादा से ज्यादा सरल और स्पष्ट बनाएं। मुझे संतोष है कि देश ने इस दिशा में कई ऐतिहासिक और निर्णायक कदम उठाए हैं। हमने पूरी तरह से अप्रासंगिक हो चुके सैकड़ों औपनिवेशिक कानूनों को रद्द किया है। आजादी के इतने दशक बाद गुलामी की मानसिकता से उबरते हुए देश ने भारतीय दंड संहिता की जगह 'भारतीय न्याय संहिता' को अपनाया है। दंड की जगह न्याय ये भारतीय चिंतन का आधार है। संहिता इस मानवीय चिंतन को आगे बढ़ाती है।

पीएम ने कहा- आज देश के सपने भी बड़े हैं। देशवासियों की आकांक्षाएं भी बड़ी हैं, इसलिए जरूरी है कि हम नए भारत के हिसाब से नए इनोवेशन करें और अपनी व्यवस्थाओं को आधुनिक बनाएं। ये ‘जस्टिस फॉर ऑल’ के लिए भी उतना ही जरूरी है। आज देश में 18 हजार से ज्यादा अदालतें कम्प्यूटराइज्ड हो चुकी हैं। मुझे बताया गया है कि नेशनल ज्यूडिशियल डाटा ग्रिड से 26 करोड़ से ज्यादा मुकदमों की जानकारी एक सेंट्रलाइज्ड ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर जुड़ चुकी है।

मोदी ने कहा- आज पूरे देश की 3 हजार से ज्यादा कोर्ट परिसर और 1200 से ज्यादा जेल वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से जुड़ गई हैं। मुझे खुशी है कि राजस्थान भी इस दिशा में काफी तेज गति से काम कर रहा है। हमारी न्यायपालिका ने निरंतर राष्ट्रीय विषयों पर सजगता और सक्रियता की नैतिक जिम्मेदारी निभाई है। कश्मीर से आर्टिकल-370 हटाने का, देश के संवैधानिक एकीकरण का उदाहरण हमारे सामने है। सीएए जैसे मानवीय कानून का उदाहरण भी हमारे सामने हैं।

प्रधानमंत्री ने कहा- अभी 15 अगस्त को मैंने लाल किले से सेक्यूलर सिविल कोड (धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता) की बात की है। इस मुद्दे पर भले ही कोई सरकार पहली बार इतनी मुखर हुई हो, लेकिन हमारी ज्यूडिशियरी दशकों से इसकी वकालत करती आई है। राष्ट्रीय एकता के मुद्दे पर न्यायपालिका का ये स्पष्ट रुख न्यायपालिका पर देशवासियों में भरोसा और बढ़ाएगा। मुझे विश्वास है हमारी अदालतें ईज ऑफ जस्टिस (न्याय में आसानी) को इसी तरह सर्वोच्च प्राथमिकता देती रहेंगी। हम जिस विकसित भारत का सपना लेकर आगे बढ़ रहे हैं, उसमें हर किसी के लिए सरल, सुलभ और सहज न्याय की गारंटी हो, ये बहुत जरूरी है।

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