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जीवन में पाप का डर वास्तविक होना चाहिए : मुनिश्री प्रियदर्शी विजयजी

  रायपुर। संभवनाथ जैन मंदिर विवेकानंद नगर में आत्मोल्लास चातुर्मास 2024 की प्रवचनमाला में पाप भीरूता गुण पर व्याख्यान जारी है। बुधवार को तपस...

 


रायपुर। संभवनाथ जैन मंदिर विवेकानंद नगर में आत्मोल्लास चातुर्मास 2024 की प्रवचनमाला में पाप भीरूता गुण पर व्याख्यान जारी है। बुधवार को तपस्वी मुनिश्री प्रियदर्शी विजयजी म.सा. ने कहा कि जीवन में पाप का डर वास्तविक रहना चाहिए, बनावटी नहीं।

मुनिश्री ने कहा कि एक भाई जीवन में महंगाई से परेशान होकर,मेरे मरने पर किसी को दोष ना दिया जाए इस तरह का पत्र लिखकर बाजार से जहर लाकर पीकर सो गए, लेकिन जहर में मिलावट होने से बच गए दूसरे दिन ऑफिस पहुंचे, वहां जाकर पता चला बॉस ने तनख्वाह डबल कर दी है बहुत खुश हुए महंगाई की तकलीफ में यह एक राहत का काम था मिठाई का डब्बा लेकर घर पहुंचे पत्नी ने समाचार जाना खुश होकर मिठाई का टुकड़ा उनके मुंह में डाला, खाते ही वह भाई साहब चल बसे..... जांच पड़ताल की तो पता चला की मिठाई में छिपकली के मुख से निकला हुआ जहर गिर गया था। कहने का मतलब यह है जहर :- पाप क्रिया है,मिलावट :-- पाप का डर है, मिठाई:- धर्म क्रिया है और छिपकली की लार :- मोक्ष का द्वेष है। 

मुनिश्री ने कहा कि जीवन में पाप के डर के साथ पाप क्रिया होगी तब पाप क्रिया ज्यादा प्रभाव नहीं दिखा सकेंगी लेकिन मिठाई रूप धर्म क्रिया में मोक्ष का द्वेष (यानी संसार रसिकता ) रहेगी तो कभी भी संसार का अंत नहीं होगा।

मुनिश्री ने कहा कि जीवन में पाप का डर लाने के लिए  महत्वपूर्ण बिंदु है (1) जीवन में ऐसी कौन सी स्थिति है जिसमें आपको आनंद आता है (2) ऐसी कौन सी स्थिति है जिसमें आपको खेद उत्पन्न होता है (3) कौन सा कंपनसेशन आप क्लेम करते हो प्रभावना के लिए की सामायिक रह गई उसके लिए 

(4) आप किसकी संगति से दूर भागते हो:-  जो सज्जन धर्मी संत दानी की संगति आपको अच्छी नहीं लगती तो समझ लो कि पाप का पक्षपात आपके जीवन में कुंडली जमा कर बैठा है।

(5) किस की संगति आपको अच्छी लगती है :-  वर्तमान में धर्मी आपको अच्छे नहीं लगते यहां तक कि यदि आप अपने बच्चों के लिए लड़का या लड़की देखने जा रहे हो तो वर्तमान स्थिति के अनुसार जो लड़का या लड़की थोड़े ज्यादा धर्मिष्ठ हैं तो उसे आप पसंद नहीं करोगे मंदिर जाने वालों को आप कैंसिल करते हो पीने वाले को पसंद करते हो साधु संतों के पास जाने वाले को पसंद नहीं करते लेकिन होटल और क्लब में जाने वाले आपको पसंद आपके मन को भाते हैं

मुनिश्री ने कहा कि जीवन के अंदर दो पॉइंट को खूब महत्व दो। (1) जिस दिन  आपका जन्म  हुआ और (2) जिस दिन मुझे यह पता चले की मेरा जन्म क्यों हुआ। (1)  आपका फिजिकल जन्म है। (2)   आपका आध्यात्मिक जन्म में (फिलोसॉफिकल जन्म)।

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